जांजगीर-चाम्पा : जिले समेत ग्रामीण अंचल में आज छत्तीसगढ़ का पारंपरिक लोक पर छेरछेरा बनाया गया । कोसमन्दा में भी छेर छेरा पर्व बड़े ही धूमधाम से माने गया।सुबह से बच्चों की टोली घरो -घर “छेरछेरा कोठी के धान ल हेर ते हेरा” ..के साथ गली- मोहल्ले में गूंज सुनाई दे रही थी । डंडा नृत्य की धूम पूरे दिन भर रही। यह नृत्य छेरछेरा पर्व से एक सप्ताह पहले शुरू होकर पौष पूर्णिमा तक चलता है।
डंडा नृत्य की विशेषताएं-
डंडा नृत्य में भाग लेने वाले नर्तक रंग-बिरंगी वेशभूषा धारण करते हैं और अपने डंडों को सुंदर सजावटी रूप में तैयार करते हैं। बच्चे, युवा और बुजुर्ग सभी इस नृत्य में उत्साहपूर्वक भाग लेते हैं। नृत्य के दौरान नर्तक पारंपरिक वाद्य यंत्रों जैसे झांझ और मंजीरा की धुन पर कदमताल करते हैं। नृत्य की विभिन्न मुद्राएं और आकृतियां जैसे वृत्त, त्रिकोण, चतुष्कोण और षट्कोण इसे और भी मनमोहक बनाती हैं।
छेरछेरा का महत्व
पौष पूर्णिमा को मनाया जाने वाला छेरछेरा पर्व छत्तीसगढ़ के लोक जीवन का अभिन्न हिस्सा है। इस दिन लोग अपने घरों में उपलब्ध अन्न का दान करते हैं। धान की मिंजाई के बाद हर घर में धान का भंडार होता है, जिसे लोग खुशी-खुशी दान कर परंपरा का निर्वहन करते हैं। इस बार छेरछेरा का पर्व सोमवार को उत्साहपूर्वक मनाया गया
