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June 8, 2025 6:28 pm

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श्रीमद्भागवत कथा सुनने और कहने का फल भगवान के श्रीचरणों में निष्काम भक्ति का उदय होना हैं । जिन मनुष्यों के जीवन में भगवान के प्रति प्रधानता हैं,वही मानव जीवन धन्य हैं – राजेंद्र महराज सुप्रसिद्ध भागवताचार्य ।

श्रीमद्भागवत कथा का आज़ हैं चतुर्थ दिवस 

जांजगीर चाम्पा/ सक्ती @-  समीपस्थ ग्राम सरजूनी में श्रीमद्भागवत कथा का भव्य आयोजन किया गया हैं , जहां प्रथम दिन से ही श्रोताओं की भीड़ बड़ी आस्था और श्रद्धा के साथ उमड़ रही हैं । भागवत कथा के दूसरे दिन छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध भागवताचार्य पंड़ित राजेन्द्र महाराज ने प्रथम स्कंध का व्याख्यान करते हुए श्रोताओं को कहा कि श्रीमद्भागवत के प्रथम श्लोक में ही मंगलाचरण करते हुए सत्य स्वरूप परमात्मा का ध्यान किया गया हैं और ” सत्यम परम धीमहि  ” कहकर वर्णवाद , भाषावाद और संप्रदायवाद से मुक्त कर संपूर्ण जगत के कल्याण के लिए भागवत धर्म का निरूपण किया गया हैं l

भागवत सुनने और कहने का फल हैं – भगवान के श्री चरणों में निष्काम भक्ति का उदय होना ।

भक्ति का फल भगवत प्राप्ति हैं l जिन मनुष्यों के जीवन में भगवान की प्रधानता हैं, वही मानव जीवन धन्य हैं l बिना भगवान के सारा संसार कूड़े करकट के ही समान हैं  ।  संपूर्ण प्राणियों के कल्याण करने के लिए भगवान धरती पर अवतार भी लेते हैं , भागवत भगवान के अवतारों का इतिहास हैं । आचार्य श्री ने बताया कि राजा परीक्षित ने कलयुग पर उदारता और दया करके चार स्थान जुआ स्थल , मदिरालय , हिंसा का स्थान और वेस्यालय , फिर कलयुग के निवेदन करने पर स्वर्ण धातु में भी जगह बताया । अनुचित मार्ग , चोरी डकैती, आदि से प्राप्त स्वर्ण धातु में कलयुग रहता हैं , राजा परीक्षित ने भी , पांडवों के द्वारा पराजित तथा बलपूर्वक छीने राज मुकुट को धारण कर लिया था , इसलिए कलयुग राजा के सिर पर बैठ गया और विद्वान तथा धर्म की रक्षा करने वाले राजा परीक्षित से भी श्रमिक ऋषि का अपमान हो गया , उसके गले में मरे हुए सर्प को लपेट दिया । तब राजा परीक्षित को शमिक ऋषि के पुत्र श्रृंगी युवा ऋषि ने श्राप दे दिया, की सातवें दिन तक्षक नाग उसे डस देगा और उसकी मृत्यु होगी  । राजा परीक्षित की मृत्यु को सुधारने के लिए शुकदेव जी महाराज ने इस संसार का सर्वश्रेष्ठ सत्कर्म, श्रीमद्भागवत का श्रवण कराया था । संसार में पहली बार श्रीमद्भागवत की कथा भगवान श्री कृष्ण के स्वाद हम गण करने के 30 वर्ष बाद धरती पर हुआ । ब्रह्म रात  शुक्र देव जी और विष्णु रात राजा परीक्षित हैं । शुकदेव जी महाराज ने राजा परीक्षित को दुनिया के सबसे बड़े आश्चर्य का बोध कराया, और कहा कि राजन ! इस संसार में ऐसा कौन हैं जो यह नहीं जानता, कि पल प्रति पल मेरी आयु घट रही हैं , और मैं मृत्यु रूपी मंजिल की ओर आगे बढ़ रहा हूं, फिर भी मनुष्य, अपनी मृत्यु का स्मरण नहीं करता और जीवन ऐसे जीता हैं जैसे मैं कभी मारूंगा ही नहीं और वही मनुष्य एक दिन मर ऐसे जाता हैं जैसे वह कभी जिंदगी जिया ही नहीं ।

आचार्य द्वारा अन्य तथा प्रसंग के साथ  सृष्टि वर्णन, भगवान की महत्ता, दीति कश्यप संवाद, हिरण्यकश्यप वध, तथा ध्रुव चरित्र की कथा श्रवण कराया गया । बालक ध्रुव चरित्र प्रसंग का भाव बताते हुए आचार्य ने कहा कि, निष्ठा पूर्वक दृढ़ संकल्प करने से कोई भी काम कठिन नहीं होता । 5 वर्ष के छोटे से बालक ने दृढ़ संकल्प किया  या तो भगवान का दर्शन करूंगा या फिर इस शरीर का त्याग कर दूंगा । भगवान सदैव अपने भक्त के वशीभूत हैं । साक्षात भगवान नारायण मधुबन में आकर अपने प्रिय भक्तों को दर्शन दिए और भगवान की भक्ति का पुण्य फल ध्रुव को दिव्य ध्रुवलोक के रूप में प्राप्त हुआ । भगवान की भक्ति वही करता है जो भगवान से विभक्त नहीं होता , वही भगवान की भक्ति करता हैं । भक्ति से ही मुक्ति संभव हैं । कथा श्रवण करने आसपास के ग्रामों से श्रद्धालु प्रतिदिन आ रहे हैं ।  सप्त-दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के आयोजक दंपत्ति श्रीमती पूर्णा-दीनदयाल गबेल द्वारा अधिक से अधिक संख्या में कथा श्रवण करने की अपील की गई हैं ।

Hasdev Express
Author: Hasdev Express

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